हिंदी भाषा और महापुरुष
हिंदी भाषा भारतीय संस्कृति की धरोहर है जिसे बचाना भारतवासियों का परमकर्तव्य है। ध्यान, योग आसन और आयुर्वेद विषयों के साथ-साथ इनसे संबंधित हिंदी शब्द आदि, ऐसी संस्कृति है, जिसे पाने के लिए हिंदी के रास्ते से ही पहुंचा जा सकता है। भारतीय संगीत चाहे वह शास्त्रीय हो या आधुनिक हस्तकला, भोजन और वस्त्रों की विदेशी मांग जैसी आज है पहले कभी नहीं थी। लगभग हर देश में योग, ध्यान और आयुर्वेद के केन्द्र खुल गए हैं, जो दुनिया भर के लोगों को भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित करते हैं, और हम उसी अनमोल संस्कृति को त्याग दूसरो की संस्कृति में ध्यान आकर्षित करते हैं। जो स्वयं हमारी हिंदी भाषा और संस्कृति से प्रभावित हैं। हम अपनी पहचान क्यों खोना चाहते है? जबकि अन्य भाषाओं से अत्यधिक सर्वोपरि हिंदी है। हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार व हिंदी भाषा की प्रगति एवं उत्थान के लिए, इसके प्रयोग को बल देने के लिये कई महापुरुषों ने अपने मत इस प्रकार दिए हैं-
'कोई भी देश सच्चे अर्थो में तब तक स्वतंत्र नहीं है जब तक वह अपनी भाषा में नहीं बोलता। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।' महात्मा गांधी
'यदि भारत में प्रजा का राज चलाना है तो वह जनता की भाषा में ही चलाना होगा।' काका कालेलकर
'प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिंदी प्रचार से मिलेगी, दूसरी किसी चीज से नहीं।' नेताजी सुभाषचन्द्र बोस
'राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिंदी ही हो सकती है।' लालबहादुर शास्त्री
'हिंदी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। हिंदी राष्ट्रीयता के मूल को सींचकर दृढ़ करती है।' राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन
'हम हिंदुस्तानियों का एक ही सूत्र रहे- हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी हमारी लिपि देवनागरी हो।' रेहानी तैयबजी
'हिंदी से सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।' महर्षि दयानंद सरस्वती
'यदि हिंदी की उन्नति नहीं होती है तो यह देश का दुर्भाग्य है।' बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
'राष्ट्र को राष्ट्रध्वज की तरह राष्ट्रभाषा की आवश्यकता है और वह स्थान हिंदी को प्राप्त है।' अनन्त गोपाल सेवड़े
'राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं। मेरे विचार में हिंदी ही ऐसी भाषा है।' लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
'यदि भारतीय लोक कला, संस्कृति और राजनीति में एक रहना चाहते हैं तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है।' राजगोपालाचारी
'राष्ट्रीय मेल और राजनीतिक एकता के लिए सारे देश में हिंदी और नागरी का प्रचार आवश्यक है।' लाला लाजपत राय
'हिंदी साहित्य चतुष्पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का साधन है इसीलिए जनोपयोगी भी है।' डॉ. भगवान दास
'निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।' भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
'हिंदी को देश में परस्पर संपर्क भाषा बनाने का कोई विकल्प नहीं। अंग्रेजी कभी जनभाषा नहीं बन सकती।' मोरारजी देसाई
'हिंदी प्रेम की भाषा है।' महादेवी वर्मा
'भारत की अखंडता और व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए हिंदी का प्रचार अत्यन्त आवश्यक है।' महाकवि शंकर कुरूप
'कोई भी देश सच्चे अर्थो में तब तक स्वतंत्र नहीं है जब तक वह अपनी भाषा में नहीं बोलता। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।' महात्मा गांधी
'यदि भारत में प्रजा का राज चलाना है तो वह जनता की भाषा में ही चलाना होगा।' काका कालेलकर
'प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिंदी प्रचार से मिलेगी, दूसरी किसी चीज से नहीं।' नेताजी सुभाषचन्द्र बोस
'राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिंदी ही हो सकती है।' लालबहादुर शास्त्री
'हिंदी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। हिंदी राष्ट्रीयता के मूल को सींचकर दृढ़ करती है।' राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन
'हम हिंदुस्तानियों का एक ही सूत्र रहे- हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी हमारी लिपि देवनागरी हो।' रेहानी तैयबजी
'हिंदी से सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।' महर्षि दयानंद सरस्वती
'यदि हिंदी की उन्नति नहीं होती है तो यह देश का दुर्भाग्य है।' बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
'राष्ट्र को राष्ट्रध्वज की तरह राष्ट्रभाषा की आवश्यकता है और वह स्थान हिंदी को प्राप्त है।' अनन्त गोपाल सेवड़े
'राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं। मेरे विचार में हिंदी ही ऐसी भाषा है।' लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
'यदि भारतीय लोक कला, संस्कृति और राजनीति में एक रहना चाहते हैं तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है।' राजगोपालाचारी
'राष्ट्रीय मेल और राजनीतिक एकता के लिए सारे देश में हिंदी और नागरी का प्रचार आवश्यक है।' लाला लाजपत राय
'हिंदी साहित्य चतुष्पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का साधन है इसीलिए जनोपयोगी भी है।' डॉ. भगवान दास
'निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।' भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
'हिंदी को देश में परस्पर संपर्क भाषा बनाने का कोई विकल्प नहीं। अंग्रेजी कभी जनभाषा नहीं बन सकती।' मोरारजी देसाई
'हिंदी प्रेम की भाषा है।' महादेवी वर्मा
'भारत की अखंडता और व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए हिंदी का प्रचार अत्यन्त आवश्यक है।' महाकवि शंकर कुरूप
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